लोग दूसरों को देख क्यों चलते है
क्यों दूसरों को देख लोग अपनी राह बदलते हैं,
क्यों वे सबको देख उनके पीछे चलते हैं।
क्यों घर से वे लक्ष्यहीन निकलते हैं ,
क्यों लोगों को देख उनके मन मचलते।
मोम होते हुए भी माटी के समान आग में जलते हैं,
इसलिए कुछ बनने की जगह हर पल पिघलते है।
बहुत पछताते हैं जब चलते ही फिसलते है ,
क्यों एक बार गिरने के बाद भी नहीं संभलते है।
क्या इन्हे नहीं कोई समझाता जब ये ऐसा करते हैं ,
क्यों कोई नहीं कहता इनसे कुछ क्या सब इनसे डरते हैं।
ये भी हो सकता है की ये बात कभी ना सुनते हैं ,
और अनसुना कर सब बस आँख बंद कर बढ़ते हैं ।
by -
YASH GUPTA
Comments